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बुधवार, नवंबर 02, 2011

तलाश......अजनबी ठिकाने की

मेरा नसीब
इक खोटा सिक्का,
तलाशता फिरता है
किसी अजनबी ठिकाने को..
न दरिया तैर पाया
न समंदर ही लांघ पाया,
ये गिरता पड़ता आज फिर
मुझ तक चला आया,
मेरा नसीब
इक मोहब्बत का मारा
मांगता फिरता है,
किसी अजनबी दीवाने को...
रात बाकी थी कभी
ना दिन का था उसको इंतज़ार,
सहराओं की बस्ती थी इक तरफ
दलदल दूजी ओर थी बेशुमार,
मेरा नसीब
इक बेसहारा सा दुलारा
देखता रहता है शायद
ख्वाबों में लहराते फ़साने को..
मेरा नसीब
इक खोटा सिक्का,
तलाशता फिरता है
किसी अजनबी ठिकाने को..

ये जो अश्को की थी बारिश
ये शायद उसका ही जूनून था,
ये जो लहू का था इक कतरा
शायद उसका ही इक मज़मून था,
टुकड़ों को सजाता फिरता था,
दिल के ज़ख्मों को भूल
गैरों से फिर दिल लगाने को....
पता जो कभी जिंदगी की शाम,
न आता इस तरफ हाथों में लिए जाम,
बंद कर दिए थे जिसने,
उन्ही दर वालों की ठोकर खाने को...
मेरा नसीब
इक खोटा सिक्का,
तलाशता फिरता है
किसी अजनबी ठिकाने को..

जिस्म को काटने की जिद थी
काट ही डाला मगर
औरों का नहीं बल्कि खुद को...
ले जाकर बेच डाला फिर उसे
गोश्तखोरों की तस्तरी में,
आग बना के अपने दिलजले की,
ताप लिया था खुद की बोटियों को..
ये हँसता था तो अच्छा लगता था नहीं,
अब रोता है तो सबका दिल लुभाने को....
मेरा नसीब
इक खोटा सिक्का,
तलाशता फिरता है
किसी अजनबी ठिकाने को..


~बलदेव~

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