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शुक्रवार, मार्च 25, 2011

मुझको बस इक झरना न समझ,


खुशनसीब हैं जो झुका लेते हैं अपने काँधे पे सर,
हम तो हर एक के आगे दामन फैला के रोये,
आंसू बहाने तो बहुत चाहे पर कम निकले,
साँसों को सिसकियों में दबा दबा के रोये,
दिल ने जो कभी चाहा के हंस के उनका दीदार करूँ,
दिल को अपने हाथों ही चोट पहुंचा के रोये,
अब अगर कर भी लूं दीदार तो क्या फायदा,
दिल के टुकड़ों को तेरी चौखट पे सजा के रोये....

1. अपना दिल आज इक नुमाइश बन गया है,
दर्द की गहराइयों की पैमाइश बन गया है,
रहता हूँ हंसकर मगर आँखों में नमी है,
जी भरकर मुस्कुराना इक ख्वाइश बन गया है...

3. फ़ुरसत कहाँ मुझको के मुड़कर भी उस तरफ देखूं...
फ़ुरसत कहाँ मुझको... के... मुड़कर भी उस तरफ देखूं...
या रब मेरे महबूब को अब सामने तू ला दे.....
फ़ुरसत मुझको कहाँ के मुड़कर भी उस तरफ देखूं...
या रब मेरे महबूब को अब सामने तू ला दे.....
या तो मुझको उसके दीदार करा दे...
या तो ...मुझको .....उसके दीदार करा दे...
या फिर मेरी आँखों से ये नूर ही बुझा दे …

4.मुझको बस इक झरना न समझ,
समंदर भी मुझमे ही समाया है...
टूट कर बिखर जाते हैं जहां सभी सपने
हमने उन पत्थरों से दिल लगाया है...

शुक्रवार, मार्च 18, 2011

जब प्रीत बन गयी अनबुझ पहेरी

किसने देखा मीरा को,
किसने देखा राधा को,
कोई था जो हुआ करता था,
कोई था जो दिल को छुआ करता था,
कोई था....कोई था में क्यों हम रहें
कोई है से ही क्यों न सब कुछ कहें
उस जोगन को खुद से अलग कर लो,
इक नयी जोगन को खुद में भर लो,
प्यार को इक नया नाम दो,
लो आज ही उस प्यार को आगाज़ दो,
लो आज ही प्यार को बुला लो
लो आज ही प्यार से खुद को मिला लो...

श्याम इक बार राधा से जुदा जो हुआ,
फिर उसके बाद ना वो उसका हुआ..
क्यों राधा उस श्याम को ही याद करे
जो इक पल में ही उससे दूर हुआ...
राधा ने तो खुद को श्याम के संग जोड़ दिया
दुनिया को प्यार का इक नया नाम दिया
मगर फिर भी जुदाई तो थी नसीब में
के राधा तो फिर ना रही कभी भी करीब में...
के राधा तो फिर ना रही कभी भी करीब में...

लेकर अंखियों में चाहत
हम हर रोज़ फिरा करते हैं,
जब दरश की हो प्यासी अँखियाँ
उनमे बस नीर ही भरा करते हैं,
इत बैठूं, उत जाऊं,
कहीं भी मनवा ये चैन ना पाऊं,
काहे मैं पाती का कागद फैराऊं,
मैं काहे कलम हाथ में घुमाऊं..
जब प्रीत बन गयी अनबुझ पहेरी
फिर काहे का ऊधव,
फिर काहे की कोई सहेरी...

गुरुवार, मार्च 17, 2011

होली की फुलझरियां बलदेव के साथ...

१. किसी ने मंत्री जी से पूछा के मंत्री जी,
विरोधी पार्टी में रहकर जो समस्याएँ नज़र आती हैं,
सत्ता में आते ही वो सब कहाँ चली जाती हैं....
मंत्री जी बोले समस्याओं से हमने कब इनकार किया,
समस्याओं की खातिर ही तो हमने अवतार लिया..
समस्या इतनी गंभीर है के पांच साल हम उसपर करेंगे विचार,
और पांच साल बाद फिर से सत्ता में आये तो करेंगे उस पर कार्य...

२. घर की चौखट पे बैठी भौजाई को सूझी ठिठोली,
और लगी देवर से खेलने रंगों और व्यंगों की होली..
बोली की तुम पर भी तो हमारा आधा अधिकार,
क्यों नहीं लुटाते हम पर भी थोडा सा प्यार...
सुनकर देवर को भी मस्ती सुझाई,
और फिर उसने भी व्यंग की छड़ी घुमाई..
बोले हम तो आधा नहीं पूरा ही दे देते प्यार,
मगर भैया के हाथों से नहीं छूटती तुम्हारी पतवार..
तुम उन संग ही प्रीत की रीत निभाओ,
मुफ्त में अपनी देवरानी के हाथों तो हमें ना पिटवाओ...

३. काले गोरे का भेद नहीं हर दिल से हमारा नाता है,
मिया ये होली के रंग का है असर,
एक बार रंग निकला नहीं के 'सब कुछ नज़र आता है"....

४. "एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया"...क्यों नहीं, क्यों नहीं, सरकार बचाने के लिए एम पी को दस करोड़ जो मिले थे .....

मंगलवार, मार्च 15, 2011

आज फिर से कोई अपना सा लगने लगा मुझे

प्यार को कभी भी सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता और जो सीमाओं में बंधा हो वो प्यार नहीं होता. यदि हम सिर्फ अपने सगे सम्बन्धियों से प्यार करते हैं तो ये प्यार नहीं. प्यार असीमित होता है, प्यार का ज़ज्बा कभी भी दुश्मनी या नफरत नहीं सिखाएगा. प्यार हमें प्रत्येक के करीब लाता है और फिर ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दर्शाता है. हमारा एक या कुछ एक के प्रति प्यार और दूसरों के प्रति द्वेष सदैव दुःख और पीड़ा की और लेकर जाता है...
प्यार में जो भावना हो वो कुछ इस कदर हो के इंसान कहे...

"आज फिर से इक चेहरा तस्सवुर में दिखा ,
आज फिर से कोई अपना सा लगने लगा मुझे"

प्यार अगर दिल में हो तो इंसान अगर भगवान् ना भी बन सके मगर इंसान कहलाने के लायक तो हो ही सकता है...प्यार वो नहीं के जिसमे हम कहें के हमें दूसरों से प्यार है.. प्यार वो है के जिसमे दूसरे कहें के उन्हें हमसे प्यार है....

"प्यार को शब्दों में बाँध पाए वो जिगर कहाँ से लाऊं,
और जिनमे प्यार के सिवा कुछ न हो वो नज़र कहाँ से लाऊं"

हम बस यही सोचते रह जाते हैं... जबकि प्यार को किसी भी अलग तरह की नज़र की जरूरत नहीं..हम खुद को प्यार में डुबो लें और उसके बाद नज़रें घुमाये तो हर तरफ प्यार ही प्यार नज़र आने लगेगा..

रविवार, मार्च 13, 2011

किस्सों को सुनाने से भी क्या हासिल बता ऐ जिंदगी...

जिंदगी देने वाले ने ही जब हिस्सों में बाँट दी हो जिंदगी
फिर किस्सों को सुनाने से भी क्या हासिल बता ऐ जिंदगी...


यूँ ही फ़ैल गयी हवाओं में तेरी पायल की खनखनाहट,
के हर पत्ता अब बस तेरी आवाज़ सुनाये जाता है...


गम के कतरों पे जीने वाले लम्बी उम्र मांग के लाते हैं,
हंसी को साथ रखने वाले तो यूँ भी जल्द चले जाते हैं,
किसने साथ दिया जिंदगी भर "बलदेव" इक गम के सिवा,
यादों और वादों पे जीने वाले तो अक्सर ही धोखा खाते हैं...


शिकस्त थी ही नहीं मगर दे दी गयी है,
ऐ जीतने वाले मेरी किस्मत तुझे दे दी गयी है..
लबों पे सिर्फ अफसाना और चंद फरियादें हैं,
मेरे दुश्मनों को मेरी शोहरत भी दे दी गयी है..


जिंदगी को सफ़ेद चादर बना 
ओड कर बैठ गए थे इक कोने में,
जिंदगी ने समझ लिया के अब शायद..
वक़्त आ गया अब इस चादर में सिमटने का..

शनिवार, मार्च 12, 2011

मेरे अन्दर सिसकता इक जर्रा

महकता था जो आँचल कभी
आज थोडा सा वो फट गया है,
मेरे अन्दर सिसकता इक जर्रा
थक कर इक कोने में सिमट गया है....
दूर किसी पेशानी पे अब भी
इक लकीर करवट बदल रही है...
दूर किसी काँधे पे अब भी
गम की बस्ती मचल रही है...
तेरे खुश्क होते होंठो पे बिखरा
कोई कतरा छटक गया है...
मेरे अन्दर सिसकता इक जर्रा
थक कर इक कोने में सिमट गया है....
कलाई से लेकर बाहों तक का सफ़र
यूँही नहीं आसान जितना के लग रहा है..
दिल तक पहुँचने वाला ये सौदा..
हर ज़ज्बे को चीर कर भी बढ रहा है...
फलक पे टिका के नज़रें
ये दिल तेरी पलकों पे अटक गया है..
मेरे अन्दर सिसकता इक जर्रा
थक कर इक कोने में सिमट गया है....