आवाजें कई जो मुझको
है हरदम सुनायी देती,
फिर ज़र्रे को क्यों शिकायत
सुनसान हो गया है ||
इक शहर था के जिसको
आबाद कर चला था,
लौट के आया तो देखा
वीरान हो गया है ||
खुशियाँ थी चंद अपनी
गैरों तक में हमने बाटी,
फिर अपनों ने क्यों कोसा
नादान हो गया है ||
इस घर का एक कोना
जो लगता था मुझको अपना,
उनकी नज़र में वो तो
शमशान हो गया है ||
प्यार को उसने कभी भी
मुझपर नहीं लुटाया,
आज देकर वो दर्द मुझको
मेहरबान हो गया है ||
दिल जिनके हाथों था टूटा
आज फिर से मचल रहा है,
खुशहाल देखकर के उनको
कद्रदान हो गया है ||
~बलदेव~
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