प्यार को कभी भी सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता और जो सीमाओं में बंधा हो वो प्यार नहीं होता. यदि हम सिर्फ अपने सगे सम्बन्धियों से प्यार करते हैं तो ये प्यार नहीं. प्यार असीमित होता है, प्यार का ज़ज्बा कभी भी दुश्मनी या नफरत नहीं सिखाएगा. प्यार हमें प्रत्येक के करीब लाता है और फिर ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दर्शाता है. हमारा एक या कुछ एक के प्रति प्यार और दूसरों के प्रति द्वेष सदैव दुःख और पीड़ा की और लेकर जाता है...
प्यार में जो भावना हो वो कुछ इस कदर हो के इंसान कहे...
"आज फिर से इक चेहरा तस्सवुर में दिखा ,
आज फिर से कोई अपना सा लगने लगा मुझे"
प्यार अगर दिल में हो तो इंसान अगर भगवान् ना भी बन सके मगर इंसान कहलाने के लायक तो हो ही सकता है...प्यार वो नहीं के जिसमे हम कहें के हमें दूसरों से प्यार है.. प्यार वो है के जिसमे दूसरे कहें के उन्हें हमसे प्यार है....
"प्यार को शब्दों में बाँध पाए वो जिगर कहाँ से लाऊं,
और जिनमे प्यार के सिवा कुछ न हो वो नज़र कहाँ से लाऊं"
हम बस यही सोचते रह जाते हैं... जबकि प्यार को किसी भी अलग तरह की नज़र की जरूरत नहीं..हम खुद को प्यार में डुबो लें और उसके बाद नज़रें घुमाये तो हर तरफ प्यार ही प्यार नज़र आने लगेगा..
aaj fir koi apna sa laga...bahut sundar rachana
जवाब देंहटाएंहम्म्म्म कोई अपना सा लगने लगा ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता... आपका स्वागत है इस मंच पर और आपकी टिप्पणी के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंवासु, प्यार में वो कशिश होती है के हर कोई अपना सा लगने लगता है. लेकिन प्यार को हम सीमाओं में बांध देते हैं और इसी वजह से हम तड़प का एहसास करते हैं.
जवाब देंहटाएंप्यार को सीमाओं में बाँधने के बजाय उसे फैलने देना चाहिए. किसी एक के प्रति प्यार प्यार कम और जरूरत अधिक बन जाता है. लोग कहते हैं के प्यार मीरा ने किया, राधा ने किया...सही बात है, उनके प्यार में एक पवित्रता थी, एक त्याग था और इसलिए ही उनके प्यार को आज भी लोग याद करते हैं.. उन्होंने कभी अपने प्यार को अपनी जरूरत नहीं बनने दिया.
जवाब देंहटाएंsach kaha aapne bhaiya ...
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