हमने महबूब को खुदा और प्यार को इबादत समझा,
फिर भी जाने क्यों लोग मुझे काफिर कहने लगे...
यूँ ही नहीं था मुन्तजिर उसकी आहट का मैं...
अकेला चल नहीं पाया इसलिए बैठ गया था मैं...
न समझ पाया जिसे आज तक कोई
उसी का नाम जिंदगी है,
किताब के पन्नो पे गुमनाम स्याही से
लिखी गयी इबारत ही जिंदगी है....
इसकी उधेड़ बुन न शुरू होती
और ना ही ख़त्म होती....
जो टूट कर फिर से ना बन पाए
उसी का नाम जिंदगी है...
मुझे किसी किताब की कोई जरूरत नहीं,
इक पन्ना दे दो उसी में समा जाऊँगा मैं....
आज इक रेत की चादर को मेरे ऊपर डाल दो,
आज "बलदेव" फिर पानी का बुलबुला हो गया है..
नज़रों का था धोखा और दिल के हाथों मजबूर,
शायद किस्मत को ठोकर खाना था मंज़ूर...
मुझको तस्सल्ली ना देना, बहुत दिन तडपा हूँ मैं,
इक आग के नजदीक आकर, पानी को तरसा हूँ मैं..
नहीं मालुम था के गुलाब भी, इक दिन रुलाएगा
देकर ज़ख्म ये सुन्दर फूल, यूँ मेरा खून बहायेगा..
मुझको बस इक झरना न समझ,
समंदर भी मुझमे ही समाया है...
टूट कर बिखर जाते हैं जहां सभी सपने
हमने उन पत्थरों से दिल लगाया है...
मैं बहाता हूँ खून, फिर क्यों लोग पानी कहते हैं...
मेरी बदनामियों को मेरी ही तकदीर समझ लेते हैं..
'कुछ' है जो मुझको थामे बैठा था,
वरना 'कुछ' देर पहले ही वो चले गए,
अपने संग सब 'कुछ' लेकर,
हम 'कुछ' न पाकर बस खली रह गए..
मैं रोता तो हूँ मगर आंसू फिर भी नहीं निकलते,
इस दरिया को पार करना सबके बस की बात नहीं..
रात का स्पर्श था शायद बहुत प्यारा
इसलिए दिन होने का इंतज़ार न रहा..
its beautiful
जवाब देंहटाएं