खुशनसीब हैं जो झुका लेते हैं अपने काँधे पे सर,
हम तो हर एक के आगे दामन फैला के रोये,
आंसू बहाने तो बहुत चाहे पर कम निकले,
साँसों को सिसकियों में दबा दबा के रोये,
दिल ने जो कभी चाहा के हंस के उनका दीदार करूँ,
दिल को अपने हाथों ही चोट पहुंचा के रोये,
अब अगर कर भी लूं दीदार तो क्या फायदा,
दिल के टुकड़ों को तेरी चौखट पे सजा के रोये....
1. अपना दिल आज इक नुमाइश बन गया है,
दर्द की गहराइयों की पैमाइश बन गया है,
रहता हूँ हंसकर मगर आँखों में नमी है,
जी भरकर मुस्कुराना इक ख्वाइश बन गया है...
3. फ़ुरसत कहाँ मुझको के मुड़कर भी उस तरफ देखूं...
फ़ुरसत कहाँ मुझको... के... मुड़कर भी उस तरफ देखूं...
या रब मेरे महबूब को अब सामने तू ला दे.....
फ़ुरसत मुझको कहाँ के मुड़कर भी उस तरफ देखूं...
या रब मेरे महबूब को अब सामने तू ला दे.....
या तो मुझको उसके दीदार करा दे...
या तो ...मुझको .....उसके दीदार करा दे...
या फिर मेरी आँखों से ये नूर ही बुझा दे …
4.मुझको बस इक झरना न समझ,
समंदर भी मुझमे ही समाया है...
टूट कर बिखर जाते हैं जहां सभी सपने
हमने उन पत्थरों से दिल लगाया है...