मुझको बस इक झरना न समझ, समंदर भी मुझमे ही समाया है... टूट कर बिखर जाते हैं जहां सभी सपने हमने उन पत्थरों से दिल लगाया है...
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सोमवार, जुलाई 09, 2012
आगोश
"आगोश"
बूँद बूँद अश्क क्यों,
कतरा कतरा ख़ुशी क्यों,
दामन दामन फैलाव क्यों,
सिसका सिसका जवाब क्यों,
मैं क्या हूँ समझ लूं जरा,
तेरे पहलु से लिपट लूं जरा,
बर्फ हूँ पिघल लूँ जरा,
रुक, अभी सम्हल लूं जरा,
टूटा हुआ कुछ देखा कभी,
दिल को समझ रो लिया कभी,
अपना कहने की चाहत में,
कुछ पल और जी लिया अभी,
मौसम हूँ बदलने दे जरा,
राख हूँ मचलने दे जरा,
साया हूँ कुछ देर चलने दे जरा,
आ कुछ देर और हंस लेने दे जरा....
सन्नाटा नहीं ख़ामोशी है,
दर्द नहीं मदहोशी है,
मौत नहीं सिर्फ बेहोशी है,
क़त्ल नहीं सरफरोशी है...
रूहानी प्यास को बढ़ जाने दे,
थोडा और नज़दीक अब आने दे,
तू मुझसे दूर नहीं ऐ जिंदगी,
मुझे अपने आगोश में सो जाने दे..
मुझे अपने आगोश में सो जाने दे...
~बलदेव~
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