बाजार में बिकता देखा है हमने हर सामान,
इसी में बिक गया मेरा छोटा सा मकान,
दर्द जो बांटने चला यारों का कभी,
दर्द में ही डूब के रह गयी मेरी ये दास्ताँ,
खिलती कलियों ने बिखेरी खुशबू मगर,
मेरे हाथों में रह गए काँटों से मिले निशान,
राहों में कोई अजनबी मिला अपना लिया,
आज अजनबी सी हो गयी मेरी ये पहचान,
क्यों मैं हसरत से देखता हूँ औरों की तरफ,
यहाँ नहीं दिखता कोई भी अब मेहरबान,
वो जिसकी खातिर कर ली सबसे दुश्मनी,
आज वोही बन गया मुझसे भी अनजान,
मुकद्दर आजमाने की तमन्ना की "बलदेव" ने,
मुकद्दर ने ही मिटा दिया मेरा भी नामो-निशान.....